लाड़ प्यार का समंदर मां
मोह-ममता का मंदिर मां
अच्छी-अच्छी बात बताती
लोरी गाए सुलाए मां
धमकाती जब करें शरारत
रूठें तब पुचकारे मां
मनुज भले बूढ़ा हो जाए
उसे समझती बच्चा मां
मां कहने से मुंह भर आता
हृदय नेह सरसाए मां
सारे तीरथ-धाम वहीं पर
जिस घर में मुस्काए मां
मां सम नहीं जगत में दूजा
परमेश्वर भी पूजे मां।
राजस्थानी से अनुवाद-
राजेश्वरी पारीक ‘मीना’
मूल कवि-शिवराज भारतीय
VERY GOOD
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